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हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से - शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा कविता - Darsaal

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

हल्क़ा-ए-मौज में गौहर गए ख़ामोशी से

साअत-ए-वस्ल क़यामत की घड़ी ठहरी थी

जिस्म ख़ामोश थे दिल डर गए ख़ामोशी से

आज़माइश थी कड़ी कू-ए-वफ़ा में कि जहाँ

कज-कुलह आए सुबुक-सर गए ख़ामोशी से

हम तिरे हिज्र में आवारा-सुख़न हो निकले

ज़ख़्म जो तू ने दिए भर गए ख़ामोशी से

शिकवा-संज-ए-ग़म-ए-मंज़िल थे फ़क़त हम वर्ना

कारवाँ कितने सफ़र कर गए ख़ामोशी से

कू-ए-महबूब की शम्ओं' को ख़बर है कि नहीं

साए किस सम्त बराबर गए ख़ामोशी से

दुख के सन्नाटे में याद आएँगे तुझ को हम से

जो तिरे दर पे सदा कर गए ख़ामोशी से

जाने ज़िंदाँ के दर-ओ-बाम का अंदाज़ है क्या

नारा-ज़न आए जो अक्सर गए ख़ामोशी से

कुछ तो थी लौह-ए-अज़ल बाइ'स-ए-बरबादी-ए-दिल

वार अहबाब भी कुछ कर गए ख़ामोशी से

कोई मुनइ'म न मिला दिल का ग़नी या क़िस्मत

दर-ब-दर तेरे गदागर गए ख़ामोशी से

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In Hindi By Famous Poet Shafqat Tanveer Mirza. is written by Shafqat Tanveer Mirza. Complete Poem in Hindi by Shafqat Tanveer Mirza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.