Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a749d9b5df39b8263bcd655044d526c0, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे - शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा कविता - Darsaal

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

दयार-ए-दिल में क़यामत उठा के बैठ रहे

वहाँ जहाँ पर अँधेरों का कारवाँ उतरा

किसी उमीद पे शमएँ जला के बैठ रहे

तुम्हारे हिज्र में जो कुछ गुज़र गई गुज़री

तुम्हारे वस्ल में हम घर जला के बैठ रहे

कहाँ के दार-ओ-रसन और क्या शहीद-ए-वफ़ा

ये कारोबार भी कल फिर उठा के बैठ रहे

ख़बर न थी कि ज़माँ-आश्कार थे जो कभी

वो पर्दा-दार तो चलन गिरा के बैठ रहे

कड़कती धूप में दश्त-ए-सफ़र से घबरा कर

फ़सील-ए-शहर के साए में आ के बैठ रहे

ज़माना कुछ तो कहे उन से जो ब-हीला-ए-दिल

किसी की बज़्म से हम को उठा के बैठ रहे

गिरी है घर की कड़ी पर कड़ी तो घर वाले

ग़ुबार-ए-शर्म में चेहरे छुपा के बैठ रहे

वो तिफ़्ल-ए-मकतब-ए-रस्म-ए-वफ़ा हमीं तो न थे

जो अपनी यादों का मेला लगा के बैठ रहे

है बाज़गश्त ही शायद मिरी फ़ुग़ाँ का जवाब

''ख़ुदा'' तो अपनी ही क़ब्रों पे जा के बैठ रहे

वो ना-ख़ुदा थे ज़माने में मो'तबर जो सदा

समुंदरों में सफ़ीने बहा के बैठ रहे

(495) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shafqat Tanveer Mirza. is written by Shafqat Tanveer Mirza. Complete Poem in Hindi by Shafqat Tanveer Mirza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.