उम्र भर डोलती यादों की ज़िया से खेले
उम्र भर डोलती यादों की ज़िया से खेले
शम-ए-उम्मीद लिए तेज़ हवा से खेले
हम ने हर तरह से दिल-ए-ख़ून किया है अपना
आतिश-ए-मय से कभी जुर्म-ए-वफ़ा से खेले
तू वो इक आग जिसे हाथ लगाए न बने
दिल वो दीवाना कि इस सैल-ए-बला से खेले
उड़ गया रंग रुख़-ए-मौसम-ए-गुल का क्या क्या
ख़ुश्क पत्ते जो कभी बाद-ए-सबा से खेले
किस ने ज़ंजीर किया अब्र-ए-रवाँ को शफ़क़त
फ़स्ल-ए-गुल आई तो हम अपनी क़बा से खेले
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