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रुकूँ तो रुकता है चलने पे साथ चलता है - शफ़ीक़ सलीमी कविता - Darsaal

रुकूँ तो रुकता है चलने पे साथ चलता है

रुकूँ तो रुकता है चलने पे साथ चलता है

मगर गिरफ़्त में आता नहीं कि साया है

झुलस रहे हैं बदन धूप की तमाज़त से

कि रात भर बड़े ज़ोरों का अब्र बरसा है

अभी तो कल की थकन जिस्म से नहीं निकली

सितम कि आज का दिन भी पहाड़ जैसा है

समझ रहे थे जिसे एक मेहरबाँ बादल

वो आग बन के हरी खेतियों पे बरसा है

वो एक शख़्स जिसे आज तक नहीं देखा

ख़याल-ओ-फ़िक्र पे उस शख़्स का इजारा है

दबीज़ पर्दों के पीछे न झाँकिए कि वहाँ

गए दिनों को निशानी बना के रक्खा है

'शफ़ीक़' ढूँडने निकले थे घर से हम जिस को

वो किर्चियों की तरह रास्तों में बिखरा है

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.