जो भी हम से बन पड़ा करते रहे

जो भी हम से बन पड़ा करते रहे

रुत बदलने की दुआ करते रहे

कैसी कैसी चाहतों के थे चराग़

जिन को हम बुर्द-ए-हवा करते रहे

टाँक कर ख़ुश-रंग उम्मीदों के फूल

ख़ुश्क टहनी को हरा करते रहे

रंग ख़ुशबू से अलग होते न थे

लफ़्ज़ मअनी से जुदा करते रहे

जानते थे चापलूसी का हुनर

काम फिर भी दूसरा करते रहे

ख़ौफ़-नगरी के मकीं थे हम 'शफ़ीक़'

फिर भी जज़्बों को सदा करते रहे

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.