Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9328ed08073309323cbbb09de6eb4aeb, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
इन बला की आँधियों में इक शजर बाक़ी रहे - शफ़ीक़ सलीमी कविता - Darsaal

इन बला की आँधियों में इक शजर बाक़ी रहे

इन बला की आँधियों में इक शजर बाक़ी रहे

फ़ाख़्ताओं के लिए कोई तो घर बाक़ी रहे

एक तारा एक दीपक एक जुगनू ही सही

रात की दीवार में कोई तो दर बाक़ी रहे

चाँद की कश्ती तह-ए-दरिया हुई थी जिस जगह

कुछ निशाँ बाक़ी रहे कोई भँवर बाक़ी रहे

जाने वाले को कभी भी लौट कर आना नहीं

लौट आने की बहर-सूरत ख़बर बाक़ी रहे

सर्द मौसम में उठा कर हाथ ये माँगें दुआ

तन में जाँ बाक़ी रहे जाँ में शरर बाक़ी रहे

राह में थक कर कहीं पर बैठ मत जाना 'शफ़ीक़'

घर की जानिब वापसी का इक सफ़र बाक़ी रहे

(554) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.