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गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर - शफ़ीक़ सलीमी कविता - Darsaal

गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर

गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर

क़र्या क़र्या फैल रहा है तन्हाई का ज़हर

मुझ को डसता रहता है बस हर दम यही ख़याल

एक ही रुख़ पर क्यूँ बहता है दरिया आठों पहर

कौन सा भूला-बिसरा ग़म था जो आया है याद

रह रह कर फिर दिल में उट्ठे दर्द की मीठी लहर

मेरा जीते रहना भी तो बन गया एक अज़ाब

लेकिन मेरा मरना भी तो हो जाएगा क़हर

लगता है कुछ अनहोनी सी होने वाली है

दरहम-बरहम होने को है जैसे निज़ाम-ए-दहर

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.