देख कर उस को मुझे धचका लगा
मिस्ल-ए-दरिया था मगर प्यासा लगा
नफ़रतों की धुँद में लिपटा लगा
आइने का नक़्श भी झूटा लगा
सख़्त-जाँ थे बच गए इस बार भी
ज़ख़्म अब के भी हमें गहरा लगा
पूरे क़द से ईस्तादा जब हुए
शहर का हर शख़्स फिर बौना लगा
किस की छाँव साएबाँ करते 'शफ़ीक़'
हर शजर पर ख़ौफ़ का साया लगा