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बजा कि हर कोई अपनी ही अहमियत चाहे - शफ़ीक़ सलीमी कविता - Darsaal

बजा कि हर कोई अपनी ही अहमियत चाहे

बजा कि हर कोई अपनी ही अहमियत चाहे

मगर वो शख़्स तो हम से मुसाहिबत चाहे

गुज़र रहे हैं अजब जाँ-कनी में रोज़-ओ-शब

कि रूह क़र्या-ए-तन से मुहाजरत चाहे

कमाँ में तीर चढ़ा हो तो बे-अमाँ ताइर

सलामती को कोई कुंज-ए-आफ़ियत चाहे

निकल पड़े हैं घरों से तो सोचना कैसा

अब आए रह में अज़ाबों की सल्तनत चाहे

अना के हाथों हुआ है 'शफ़ीक़' जो भी हुआ

मगर ये दिल कि अभी तक मुफ़ाहमत चाहे

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.