बचा था एक जो वो राब्ता भी टूट गया
बचा था एक जो वो राब्ता भी टूट गया
ख़फ़ा जो ख़ुद से हुए आइना भी टूट गया
फ़ज़ाएँ लाख बुलाएँ उड़ान कैसे भरें
परों के साथ ही जब हौसला भी टूट गया
उस एक पेड़ के दर पे थीं आँधियाँ क्या क्या
कि उस के टूटते ज़ोर-ए-हवा भी टूट गया
परिंदे ढूँडते फिरते हैं फिर से जा-ए-अमाँ
शजर के साथ ही हर घोंसला भी टूट गया
'शफ़ीक़' वो तो बना है अजीब मिट्टी से
कि दे के दस्तकें संग-ए-सदा भी टूट गया
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