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अब जा कर एहसास हुआ है प्यार भी करना था - शफ़ीक़ सलीमी कविता - Darsaal

अब जा कर एहसास हुआ है प्यार भी करना था

अब जा कर एहसास हुआ है प्यार भी करना था

प्यार जो करना था उस का इज़हार भी करना था

अव्वल अव्वल कश्ती-ए-जाँ ग़र्क़ाब भी होना थी

आख़िर आख़िर साँसों को पतवार भी करना था

सब कुछ पाना भी था हम को सब कुछ खोना भी

जीत भी जाना था फिर जीत को हार भी करना था

सहराओं की ख़ाक उड़ाते अंधे रस्तों से

दरिया तक भी आना दरिया पार भी करना था

इक उजड़ा वीरान सा मंज़र देख के बाहर का

अपने हाथों हर दर को दीवार भी करना था

नर्म मुलाएम चेहरे गहरी नीली आँखों वाले

तुझ जैसे बे-मेहर को अपना यार भी करना था

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Saleemi. is written by Shafiq Saleemi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Saleemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.