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जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो - शफ़ीक़ रामपुरी कविता - Darsaal

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

बोलीं अमाँ 'मोहम्मद-अली' की

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

साथ तेरे हैं 'शौकत-अली' भी

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

गर ज़रा सुस्त देखूँगी तुम को

दूध हरगिज़ न बख़्शूँगी तुम को

मैं दिलावर न समझूँगी तुम को

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

ग़ैब से मेरी इमदाद होगी

अब हुकूमत ये बर्बाद होगी

हश्र तक अब न आबाद होगी

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

खाँसी आए अगर तुम को जानी

माँगना मत हुकूमत से पानी

बूढ़ी अमाँ का कुछ ग़म न करना

कलमा पढ़ पढ़ ख़िलाफ़त पे मरना

पूरे उस इम्तिहाँ में उतरना

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

होते मेरे अगर सात बेटे

करती सब को ख़िलाफ़त पे सदक़े

हैं यही दीन-ए-अहमद के रस्ते

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

हश्र में हश्र बरपा करूँगी

पेश-ए-हक़ तुम को ले के चलूँगी

इस हुकूमत पे दावा करूँगी

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

चैन हम ने 'शफ़ीक़' अब न पाया

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Rampuri. is written by Shafiq Rampuri. Complete Poem in Hindi by Shafiq Rampuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.