जला वो शम्अ कि आँधी जिसे बुझा न सके
वो नक़्श बन कि ज़माना जिसे मिटा न सके
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(846) Peoples Rate This
इश्क़ की इब्तिदा तो जानते हैं
पर्दा पड़ा हुआ था ख़ुदी ने उठा दिया
कमाल-ए-आशिक़ी हर शख़्स को हासिल नहीं होता
तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे
वो गर्म आँसुओं की रवानी तमाम रात
कब से इस दुनिया को सरगर्म-ए-सफ़र पाता हूँ मैं
मौसम-ए-गुल है न दौर-जाम-ओ-सहबा रह गया
कोई टूटी हुई कश्ती का तख़्ता भी अगर है ला
ऐसी नींद आई कि फिर मौत को प्यार आ ही गया
कश्ती का ज़िम्मेदार फ़क़त नाख़ुदा नहीं
यूँ तसव्वुर में बसर रात किया करते थे