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दिल टूट चुका तार-ए-नज़र टूट रहा है - शफ़ीक़ देहलवी कविता - Darsaal

दिल टूट चुका तार-ए-नज़र टूट रहा है

दिल टूट चुका तार-ए-नज़र टूट रहा है

क़िस्तों में मुसाफ़िर का सफ़र टूट रहा है

हर रोज़ बदलता है नया रंग ज़माना

हर शख़्स ब-अंदाज़-ए-दिगर टूट रहा है

तू ग़ौर से देखे तो ये मा'लूम हो तुझ को

जो कुछ है तिरे पेश-ए-नज़र टूट रहा है

क्या जानिए क्यूँ लोग तशद्दुद पे उतर आए

दस्तार बचाते हैं तो सर टूट रहा है

मंज़िल है कि ओझल है निगाहों से अभी तक

रस्ता है कि ता-हद्द-ए-नज़र टूट रहा है

जो वार भी करता है वो कारी नहीं होता

क़ातिल का मिरे ज़ोम-ए-हुनर टूट रहा है

कुछ ऐसे 'शफ़ीक़' अब के हुए वक़्त से पामाल

परवाज़ का ज़ामिन था जो पर टूट रहा है

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In Hindi By Famous Poet Shafiq Dehlvi. is written by Shafiq Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Shafiq Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.