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ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में - शफ़ी ज़ामिन कविता - Darsaal

ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में

ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में

ये मैं नहीं हूँ तो फिर कौन ढल गया मुझ में

ये किस ने छेद के रख दी मिरी अना की सिपर

ये कौन तीर की मानिंद चल गया मुझ में

फिर उस की याद में दिल बे-क़रार रहने लगा

फिर एक बार ये पत्थर पिघल गया मुझ में

ये आइने में मिरे अक्स के सिवा क्या था

कि एक शख़्स अचानक दहल गया मुझ में

कुछ ऐसे हब्स भरे रोज़-ओ-शब मिले मुझ को

कि एक पाए का फ़नकार गल गया मुझ में

किसी तरफ़ से सहारा मिला न जब कोई

तो एक डोलता इंसाँ सँभल गया मुझ में

धनक के रंग भला कौन छू सका 'ज़ामिन'

ये आज क्यूँ मिरा बचपन मचल गया मुझ में

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In Hindi By Famous Poet Shafi Zamin. is written by Shafi Zamin. Complete Poem in Hindi by Shafi Zamin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.