कुछ सबील-ए-रिज़्क़ हो फिर कहीं मकाँ भी हो

कुछ सबील-ए-रिज़्क़ हो फिर कहीं मकाँ भी हो

तू अभी यहाँ न आ शहर में अमाँ भी हो

सारी रात ईंट से ईंट शहर की बजे

और बाम-ए-सुब्ह पर ख़ुश-नवा अज़ाँ भी हो

और मेरी ये दुआ भी क़ुबूल हो गई

क़त्ल भी मुझे करे मुझ पे मेहरबाँ भी हो

कुछ तो आफ़त-ए-समावी से ध्यान भी हटे

वो जो रन पड़ा वहाँ रन वही यहाँ भी हो

ख़्वाब ले के शहर में आए हो नए नए

ख़ुश-मिज़ाज हो मिरी तरह ख़ुश-गुमाँ भी हो

मेरी अपनी मर्ज़ी के रंग हों फ़ज़ाओं में

मेरे दस्त में ज़मीं है तो आसमाँ भी हो

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In Hindi By Famous Poet Shafaq Supuri. is written by Shafaq Supuri. Complete Poem in Hindi by Shafaq Supuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.