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आँखों से मअ'नी-ए-सुख़न-ए-मीर देखते - शफ़क़ सुपुरी कविता - Darsaal

आँखों से मअ'नी-ए-सुख़न-ए-मीर देखते

आँखों से मअ'नी-ए-सुख़न-ए-मीर देखते

हम भी कभी बहार में ज़ंजीर देखते

करते निगाह अपने भी दामन के दाग़ पर

अपना गुनाह देखते तक़्सीर देखते

इतना हमारे तन का लहू ख़ुश्क भी न था

हम ज़ख़्म-ए-दिल को ग़ुंचा-ए-तस्वीर देखते

तेरी गली में ख़ाक हुए हम फिर उस के बाद

क्या फ़ाएदा था ख़ाक की तासीर देखते

अच्छा हुआ जो टूट गया आ के हाथ में

हम आईने में बख़्त के तदबीर देखते

वो ग़म तो था अज़ीज़ पर उस की कहाँ तलक

तख़रीब देखते कभी तामीर देखते

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In Hindi By Famous Poet Shafaq Supuri. is written by Shafaq Supuri. Complete Poem in Hindi by Shafaq Supuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.