गुल याद न अमवाज-ए-नसीम-ए-सहरी याद
गुल याद न अमवाज-ए-नसीम-ए-सहरी याद
कुछ भी नहीं जुज़ आलम-ए-बे-बाल-ओ-परी याद
ख़ुर्शीद-ए-सहर आरिज़-ए-महताब का आलम
नज़रों को अभी तक है तिरी जल्वागरी याद
सू-ए-हरम-ओ-दैर कभी रुख़ न करेंगे
जिन को मिरे साक़ी की है रंगीं-नज़री याद
जल्वों का तक़ाज़ा नहीं करती नज़र उन की
रहती है जिन्हें हुस्न की दीवाना-गरी याद
ये वक़्त ब-हर-हाल गुज़र जाएगा लेकिन
रह जाएगी आहों की हमें बे-असरी याद
मैं वो हूँ कि पर्दे में तुझे देख चुका हूँ
शायद हो तुझे मेरी वसीअ-उन-नज़री याद
मय-ख़ाना था और शग़्ल-मय-नाब था 'शाइर'
अब तक है मुझे दामन-ए-ज़ाहिद की तरी याद
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