कर के सागर ने किनारे मुस्तरद
कर के सागर ने किनारे मुस्तरद
कर दिए अपने सहारे मुस्तरद
शर्म-गीं नज़रों ने उस की कर दिए
मेरी आँखों के इशारे मुस्तरद
आप के आँचल में सज कर जी उठे
थे फ़लक पर जो सितारे मुस्तरद
उस से मिल कर फूल शबनम चाँदनी
हो गए सब इस्तिआ'रे मुस्तरद
राह दिखला ही न आएँ जो दुरुस्त
कर दिए जाएँ ऐसे तारे मुस्तरद
आप से मुझ को मिली है दाद अब
या'नी पिछले शे'र सारे मुस्तरद
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