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आदतन मायूस अब तो शाम है - शादाब उल्फ़त कविता - Darsaal

आदतन मायूस अब तो शाम है

आदतन मायूस अब तो शाम है

हिज्र तो बस मुफ़्त ही बदनाम है

आज फिर धुँदला गया मेरा ख़याल

आज फिर अल्फ़ाज़ में कोहराम है

अलगनी पर टाँग कर दिन का लिबास

रात को अब चैन है आराम है

नक़्स ताबीरों में क्यूँ करना रहे

ख़्वाब ही जब के हमारा ख़ाम है

मुख़्तलिफ़ शक्लें बनाना वक़्त का

बस यही तो गर्दिश-ए-अय्याम है

इस फ़िराक़-ए-ना-तवाँ में आज फिर

ये ग़ज़ल भी लो तुम्हारे नाम है

बर्फ़ के दरिया किनारे आफ़्ताब

या वहाँ मा'शूक़ लाला-फ़ाम है

फ़ल्सफ़ा कोई ज़रूरी तो नहीं

मस्ख़री भी शाइ'री में आम है

यार बतला दो मुझे उस का पता

मुझ को 'उल्फ़त' से ज़रा सा काम है

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In Hindi By Famous Poet Shadab Ulfat. is written by Shadab Ulfat. Complete Poem in Hindi by Shadab Ulfat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.