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गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना - शाद शाद नूही कविता - Darsaal

गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना

गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना

गई रुतों का शजर मेहरबान था इतना

न जाने कितने समुंदर उतर गए होंगे

किसी के पाँव का गहरा निशान था इतना

ख़लाओं में हद-ए-फ़ासिल को खींचने वालो

ज़मीं से दूर कभी आसमान था इतना

खड़ा है सामने बन कर ख़ुलूस का पैकर

जो शख़्स देखने में बद-ज़बान था इतना

बदन से रूह निकलने के ब'अद लौट आई

वो मर के भी न मिरा सख़्त-जान था इतना

वो अपने क़द को बढ़ा कर भी छू नहीं पाए

झुका हुआ ये तिरा साएबान था इतना

कोई चराग़-ए-सहर तक न चल सका ऐ 'शाद'

गली के मोड़ पे ख़ूनी मकान था इतना

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In Hindi By Famous Poet Shad Nohi. is written by Shad Nohi. Complete Poem in Hindi by Shad Nohi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.