तू वो हिन्दोस्ताँ में लाला है
तू वो हिन्दोस्ताँ में लाला है
जिस का दाग़ी ग़ुलाम लाला है
हाथ वहशत से रोक ऐ मजनूँ
पाँव पड़ता हर एक छाला है
बे-मय-ओ-नाँ हूँ मैं वो ग़ैरों से
हम-पियाला है हम-निवाला है
दिल-ए-हर-शैख़-ओ-बरहमन है जुदा
कहीं मस्जिद कहीं शिवाला है
उस के आने से तन में जान आई
दम-ए-आख़िर लिया सँभाला है
चुप रहूँ क्या मैं सूरत-ए-नाक़ूस
दिल है शक़ जब लबों पे नाला है
क्यूँ न सिमरन पढ़े बशर ऐ 'शाद'
आदमी हड्डियों का माला है
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