सुना हम को आते जो अंदर से बाहर
सुना हम को आते जो अंदर से बाहर
फिरे उल्टे पैरों बाहर से बाहर
कड़ी में न दे साथ यार-ए-दिली तक
शरर चोट खा कर हो पत्थर से बाहर
यूँही कल-अदम हम मियान-ए-लहद थे
मिटाया निशाँ उस पे ठोकर से बाहर
न कर हर्ज़ा-गर्दी जो ज़ी-आबरू है
निकलता नहीं आइना घर से बाहर
जिनाँ से हुई मुद्दत आदम को निकले
वतन से हूँ मैं ज़िंदगी-भर से बाहर
वो महरूम-ए-दौलत हूँ बरगश्ता क़िस्मत
उड़े ख़ाक घर में जो हू बरसे बाहर
मिटे गर्दिश-ए-बख़्त क्या लाग़रों की
न हो काह-ए-गिर्दाब चक्कर से बाहर
लड़ाते जो हो 'शाद' से घर में आँखें
नज़र डालो हम पर भी तेवर से बाहर
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