शर्तें जो बंदगी में लगाना रवा हुआ
शर्तें जो बंदगी में लगाना रवा हुआ
ऐ वाइ'ज़ों नमाज़ न ठहरी जुआ हुआ
उभरा जो रू-सियाह तुनुक-ज़र्फ़ क्या हुआ
हद से सिवा जो ख़ाल हुआ वो मसा हुआ
पूछो न कू-ए-यार-ए-अदम की मुसाफ़िरो
ढर्रा है सू-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ लगा हुआ
सूखा हवा-ए-ग़म से जो कुछ ताज़गी हुई
मैं वो शजर हूँ ख़ुश्क हुआ जब हरा हुआ
सानी मुहाल है सनम-ए-लाजवाब का
पैदा कोई ख़ुदा का नहीं दूसरा हुआ
मिस्ल-ए-हबाब दम में फ़ना हो जो आदमी
पानी का बुलबुला न हुआ और क्या हुआ
वो दिल-जला हूँ जिस में मिरी ख़ाक मिल गई
जो नख़्ल इस ज़मीं पे हुआ आग का हुआ
नाख़ुन-ख़राशियों से जराहत जो बढ़ चले
नासूर और ज़ख़्म-ए-कुहन में सिवा हुआ
हँसते तो गुल-रुख़ों से हैं मिस्ल-ए-दहान-ए-ज़ख़्म
लेकिन है आबले की तरह दिल दुखा हुआ
साकित ज़बान हो गई ऐ 'शाद' मरते दम
क्या बंद अंदलीब मिरा बोलता हुआ
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