Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5cf754edfffe0df980888ec06e3d88f3, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
क़ौल उस दरोग़-गो का कोई भी सच हुआ है - शाद लखनवी कविता - Darsaal

क़ौल उस दरोग़-गो का कोई भी सच हुआ है

क़ौल उस दरोग़-गो का कोई भी सच हुआ है

वाइज़ जहान-भर का झूटा लबारिया है

काबे में जिस हसीं का लगता नहीं पता है

मिल जाए बुत-कदे में जो वो सनम ख़ुदा है

पूजा न कर बुतों को अपनी ही कर परस्तिश

ऐ बुत-परस्त पुतला तू भी तो ख़ाक का है

रग रग में ये बंधी है गर्द-ए-मलाल-ए-ख़ातिर

वो सैद हूँ कि जिस का सब गोश्त किरकिरा है

उम्र-ए-रवाँ है मिस्ल-ए-मौज-ए-रवाँ गुरेज़ाँ

बहर-ए-जहाँ में इंसाँ पानी का बुलबुला है

करने को सर फुटव्वल जिस कोह के दर्रे में

जब मैं पुकारता हूँ फ़रहाद बोलता है

वो बुत न राम होगा बे-रब किसी के चाहे

ऐ बरहमन ख़ुदा का क्या कोई दूसरा है

दंदाँ के आशिक़ों के आँसू हैं दुर नहीं हैं

निकली जो सीतला है वो भी तो मोतिया है

गुम-ज़ार 'शाद' गाहे इमरोज़ रा ब-फ़र्दा

मा'लूम ये किसे है कल क्या है आज क्या है

(580) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shad Lakhnavi. is written by Shad Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Shad Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.