ना-तवाँ वो हूँ निगाहों में समा ही न सकूँ
ना-तवाँ वो हूँ निगाहों में समा ही न सकूँ
भरूँ आँखों में नज़र सा नज़र आ ही न सकूँ
दिल जलाना है तो ऐ मेहर जला मिस्ल-ए-कबाब
दाग़ कुछ मोहर नहीं है जो उठा ही न सकूँ
तह-ए-शमशीर-ए-दो-दम ख़ुश हूँ ये शीशे की तरह
एक दम संग-दिलों से मैं बना ही न सकूँ
हम-नशीं यार हो क्या ये है नसीबों में फ़िराक़
जोड़ आ'ज़ा के भी उख़ड़ें तो बिठा ही न सकूँ
ख़ुद फ़रामोश हूँ ऐसा कि दिल-ए-बे-ख़ुद से
याद उस बुत की भुलाऊँ तो भुला ही न सकूँ
ख़ामा सा है अज़ली सीना-फ़िगारी मेरी
ज़ख़्म-ए-दिल लाख सिलाऊँ प सिला ही न सकूँ
दस्तरस काकुल-ए-ख़मदार ये होना ही मुहाल
ये वो नागन है जो हाथों पे खिला ही न सकूँ
नाज़नीं ये है कि ऐ 'शाद' नज़र-बाज़ों को
कमर उस की जो दिखाऊँ तो दिखा ही न सकूँ
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