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मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है - शाद लखनवी कविता - Darsaal

मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है

मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है

जो हथेली हाथ में है इक कफ़-ए-अफ़सोस है

इस क़दर रंज-ए-सियह-बख़्ती से हूँ ज़ार-ओ-नहीफ़

दो-क़दम चलना भी जिस को एक काले कोस है

आसमाँ नान-ए-जवीं भी दे तो ने'मत जानिए

पाओ-रोटी भी जो हाथ आए समझे तोस है

ग़ैर के ख़ातिर धरा जाता हूँ मैं मुफ़्त-ए-ख़ुदा

कोई मुल्ज़िम हो वो बुत देता मुझी को दोस है

'शाद' आसा है उसे भी बोसा-ए-लब की हवस

बुल-हवस भी ऐ शकर-लब एक ही लहलूस है

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In Hindi By Famous Poet Shad Lakhnavi. is written by Shad Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Shad Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.