जो मुर्ग़-ए-क़िबला-नुमा बन के आशियाँ से चले
जो मुर्ग़-ए-क़िबला-नुमा बन के आशियाँ से चले
तड़प तड़प के वहीं रह गए जहाँ से चले
जिगर शिगाफ़ हो या दिल हो चाक वहशत से
जुनूँ में जामा-ए-तन देखिए कहाँ से चले
जो मर के रेग-ए-रवाँ भी बने ज़ईफ़ी में
यहाँ पे रह गए हम ना-तवाँ वहाँ से चले
सबात-ए-जामा-ए-हस्ती हो ख़ाक पीरी में
जो पैरहन हो पुराना बहुत कहाँ से चले
वहाँ से आए अकेले थे नामुरादाना
हज़ार हसरत-ओ-अरमाँ लिए यहाँ से चले
मिरा तिरा की तरह 'शाद' ये भी ईता है
ये क़ाफ़िया न नहीं से चले न हाँ से चले
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