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हर शब ख़याल-ए-ग़ैर के मारे अलग-थलग - शाद लखनवी कविता - Darsaal

हर शब ख़याल-ए-ग़ैर के मारे अलग-थलग

हर शब ख़याल-ए-ग़ैर के मारे अलग-थलग

आते हैं ख़्वाब में वो हमारे अलग-थलग

गर ग़ैर साथ साए के सूरत न था तो क्यूँ

मिस्ल-ए-सबा चमन से सिधारे अलग-थलग

बुलबुल वो हूँ कि फ़स्ल के पहले ही बाग़बाँ

लेता है बाग़ जिस का इजारे अलग-थलग

दाम-ए-बला में फँसते हैं आप आ के सैकड़ों

वो बुत हज़ार बाल सँवारे अलग-थलग

ऐ गुल तुझे किसी की न मुतलक़ ख़बर हुई

ग़ुंचे चटक चटक के पुकारे अलग-थलग

ख़ल्वत में भी जो आए हैं जल्वत का ज़िक्र क्या

बैठे हुए हैं शर्म के मारे अलग-थलग

पेश-ए-नज़र शबीह-ए-ख़याली है अपनी 'शाद'

नक़्शे जमे हुए हैं हमारे अलग-थलग

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In Hindi By Famous Poet Shad Lakhnavi. is written by Shad Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Shad Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.