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देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा - शाद लखनवी कविता - Darsaal

देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा

देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा

मरते दम ले के सँभाला तो सँभल जाऊँगा

तन कफ़न-पोश तो हो और ही पैराहन में

उजले कपड़े में बदलते ही बदल जाऊँगा

चमन-ए-दहर में वो बर्ग-ए-ख़िज़ानी हूँ मैं

गर न बर्बाद हुआ आग में जल जाऊँगा

हूँ वो साबित-क़दम ऐ चर्ख़ जो भौंचाल भी आए

चाहे टल जाए ज़मीं मैं नहीं टल जाऊँगा

मैं वो उफ़्तादा-ए-चश्म-ओ-नज़र-ए-आलम हूँ

पाँव पकड़ेगी ज़मीं भी तो फिसल जाऊँगा

साज़-ओ-सामान-ए-तरब कुछ न अगर हाथ आया

झाँझ हो कर कफ़-ए-अफ़सोस ही मल जाऊँगा

'शाद' बहकूँ न कभी नश्शा-ए-दौलत हो हज़ार

कुछ मैं कम-ज़र्फ़ नहीं हूँ जो उबल जाऊँगा

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In Hindi By Famous Poet Shad Lakhnavi. is written by Shad Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Shad Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.