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जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे - शाद बिलगवी कविता - Darsaal

जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे

जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे

किसी के लब पे दुआएँ भी हों फ़ुग़ाँ भी रहे

तिरी ये दुश्मन-ए-जाँ को दुआ जबीन-ए-नियाज़

कि तू रहे ये तेरा संग-ए-आस्ताँ भी रहे

हुज़ूर उन के कहें हर्फ़-ए-मुद्दआ तो मगर

ये दिल भी पहलू में हो मुँह में ये ज़बाँ भी रहे

इधर तबाही-ओ-ग़ारतगरी उधर ता'मीर

गिरी है बर्क़ भी आबाद आशियाँ भी रहे

पुकारा मौत को तंग आ के ज़िंदगी से कभी

तू महव-ए-जुस्तुजू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ भी रहे

ग़म-ए-मआ'श वतन में यहाँ ग़म-ए-ग़ुर्बत

ख़राब हाल वहाँ भी रहे यहाँ भी रहे

रह-ए-वफ़ा में मिटा दे वो अपनी हस्ती को

जो चाहता है मिरा हश्र तक निशाँ भी रहे

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In Hindi By Famous Poet Shad Bilgavi. is written by Shad Bilgavi. Complete Poem in Hindi by Shad Bilgavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.