सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
पूरा इक उम्र का अरमान क्या
सय्यद से मिला प मदरसा भी देखा
'हाली' ने अजब तरह का एहसान किया
Jaun Eliya
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क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए
रौशन है कि शाद-ए-सुख़न-आरा मैं हूँ
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
ये वहम किसी तरह न माक़ूल हुआ
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
जो चाहिए देखना न देखा मैं ने
न दिल अपना न ग़म अपना न कोई ग़म-गुसार अपना
किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर