क्यूँ-कर न रहे ग़म-ए-निहानी तेरा
दुनिया में बता कौन है सानी तेरा
हम ले के असा दूर तलक ढूँड आए
कोसों नहीं नाम ऐ जवानी तेरा
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तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है
क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
तलब करें भी तो क्या शय तलब करें ऐ 'शाद'
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा
जिस वक़्त का डर था वो शबाब आ पहुँचा
हादी हूँ मैं काम है हिदायत मेरा
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं
ये बज़्म-ए-मय है याँ कोताह-दोस्ती में है महरूमी
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था