क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
तस्बीह के दानों से अबस काम लिया
ये नाम वो था जिस को बे-गिनती लेते
क्या लुत्फ़ जो गिन गिन के तिरा नाम लिया
Ahmad Faraz
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Habib Jalib
Rahat Indori
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Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
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अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तिरी रहगुज़र की ज़मीं सही
इज़हार-ए-मुद्दआ का इरादा था आज कुछ
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया
ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
था अजल का मैं अजल का हो गया
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
इस सिलसिला-ए-शुहूद को तोड़ दिया
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल