हादी हूँ मैं काम है हिदायत मेरा
दम भरते हैं अर्बाब-ए-बलाग़त मेरा
मैं शहर में रहता हूँ सनद हैं मेरे शेर
मुँह चूमती है आब-ए-फ़साहत मेरा
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ये वहम किसी तरह न माक़ूल हुआ
रौशन है कि शाद-ए-सुख़न-आरा मैं हूँ
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
तन्हा है चराग़ दूर परवाने हैं
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या