चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
अफ़्लाक-ए-तरक़्क़ी पे चढ़ते जाते हैं
मकतब बदला किताब बदली लेकिन
हम एक वही सबक़ पढ़ते जाते हैं
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
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Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
तन्हा है चराग़ दूर परवाने हैं
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका