अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
ख़्वाहान-ए-नुमूद तुझ को क्या देखेंगे
रूयत के लिए शर्त है मैदान-ए-फ़ना
पाबंद-ए-वजूद तुझ को क्या देखेंगे
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
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Gulzar
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साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
रौशन है कि शाद-ए-सुख़न-आरा मैं हूँ
लुत्फ़ क्या है बे-ख़ुदी का जब मज़ा जाता रहा
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
जिसे पाला था इक मुद्दत तक आग़ोश-ए-तमन्ना में
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है
मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
था अजल का मैं अजल का हो गया