मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
हलाल करने मुझे ईद का हिलाल आया
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क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया
क्यूँ-कर न रहे ग़म-ए-निहानी तेरा
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
न दिल अपना न ग़म अपना न कोई ग़म-गुसार अपना
हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
शहरों में फिरे न सू-ए-सहरा निकले