मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम
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तन्हा है चराग़ दूर परवाने हैं
कहते हैं अहल-ए-होश जब अफ़्साना आप का
था अजल का मैं अजल का हो गया
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
शहरों में फिरे न सू-ए-सहरा निकले
ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था
हरगिज़ कभी किसी से न रखना दिला ग़रज़