कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई
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बदले न सदाक़त का निशाँ एक रहे
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
क्यूँ बात छुपाऊँ रिंद-ए-मय-नोश हूँ मैं
दिल मोरिद-ए-ईज़ा-ओ-बला होता है
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ