कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
ख़ुम आएगा सुराही आएगी तब जाम आएगा
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जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी
सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था
था अजल का मैं अजल का हो गया
साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
अख़्लाक़ से जहल इल्म-ओ-फ़न से ग़ाफ़िल
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल