दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ
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क्यूँ-कर न रहे ग़म-ए-निहानी तेरा
हादी हूँ मैं काम है हिदायत मेरा
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को
क्यूँ बात छुपाऊँ रिंद-ए-मय-नोश हूँ मैं
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का