भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
तो ख़ामुशी को भी इज़हार-ए-मुद्दआ कहिए
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(447) Peoples Rate This
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी
जिस वक़्त का डर था वो शबाब आ पहुँचा
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया
हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
तारीफ़ बताऊँ शेर की क्या क्या है
किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना
न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया