शाद अज़ीमाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाद अज़ीमाबादी (page 2)
नाम | शाद अज़ीमाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shad Azimabadi |
जन्म की तारीख | 1846 |
मौत की तिथि | 1927 |
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को
नज़र की बर्छियाँ जो सह सके सीना उसी का है
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
कुछ ऐसा कर कि ख़ुल्द आबाद तक ऐ 'शाद' जा पहुँचें
ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
कहते हैं अहल-ए-होश जब अफ़्साना आप का
कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए
जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी
जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
इज़हार-ए-मुद्दआ का इरादा था आज कुछ
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
ऐ शौक़ पता कुछ तू ही बता अब तक ये करिश्मा कुछ न खुला
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम
था अजल का मैं अजल का हो गया
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया