ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

तन्हा कभी वो अंजुमन-आरा न मिल सका

हम पर तो जल्द खुल गया साहिल का सब भरम

अच्छे रहे वो जिन को किनारा न मिल सका

यक-तरफ़ा राब्ता ही निभाना पड़ा हमें

उन की तरफ़ से कोई इशारा न मिल सका

तुम भी क़ुसूर-वार नहीं क़िस्सा मुख़्तसर

मेरा तुम्हारे साथ सितारा न मिल सका

शहरों की ख़ाक छानी खंगाले हैं दश्त ओ दर

लेकिन हमें सुराग़ हमारा न मिल सका

मैं भी थी ख़ुद-पसंद नहीं इस में शक कोई

अक्सर तो पर मिज़ाज तुम्हारा न मिल सका

ऐ काश साथियों से वो अपने कभी कहे

'शबनम' सा कोई मुझ को दोबारा न मिल सका

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Shakeel. is written by Shabnam Shakeel. Complete Poem in Hindi by Shabnam Shakeel. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.