उन की शर्मिंदा-ए-एहसान सी हो जाती है
ये नज़र मिल के पशेमान सी हो जाती है
तुम ने छीना है मिरे दिल का दिया आँख की लौ
इन अंधेरों में भी पहचान सी हो जाती है
आँख का शहर हो आबाद तो दिल की बस्ती
आप ही आप से वीरान सी हो जाती है
उन को पहचान के भी ताज़ा सितम पर 'शबनम'
इतनी नादान है हैरान सी हो जाती है