सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं
सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं
हमारे साथ चलो गर्द-ए-रहगुज़र हम हैं
लिखी हैं चेहरों पे जो सुर्ख़ियाँ पढ़ो उन को
ख़बर हो आम कि दुनिया से बा-ख़बर हम हैं
अकेला-पन हमें महसूस कब हुआ अब तक
कि दश्त दश्त हैं लेकिन नगर नगर हम हैं
घनेरे साए न ढूँडो यहीं पे दम लो ज़रा
कि जिस की छाँव में ठंडक है वो शजर हम हैं
समुंदरों से कहो वो सिमट के आ जाएँ
कि इस जहाँ में अकेले ही कूज़ा-गर हम हैं
वो ख़ूब शख़्स है देखा है मिल के हम ने उसे
मगर है ये भी हक़ीक़त कि ख़ूब-तर हम हैं
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