मिल बैठने के सारे क़रीनों की ख़ैर हो
मिल बैठने के सारे क़रीनों की ख़ैर हो
इस कारवाँ-सरा के मकीनों की ख़ैर हो
ठहराव पानियों में है कितना अजीब सा
दरिया के ख़ुश-ख़िराम सफ़ीनों की ख़ैर हो
हर ख़्वाब के सफ़र में मिरे पाँव के तले
आ कर खिसकने वाली ज़मीनों की ख़ैर हो
कर एक लम्हा सुख का मिरे रोज़-ओ-शब को दान
तेरे तमाम साल महीनों की ख़ैर हो
दम से उन्ही के अपने दर-ओ-बाम हैं बुलंद
मेरे वतन के ख़ाक-नशीनों की ख़ैर हो
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