मिरा जीना गवाही दे रहा है
मिरा जीना गवाही दे रहा है
अभी मुझ को बहुत कुछ देखना है
मुझे हैरत है अपने दिल पे कितनी
ये मेरा साथ अब तक दे रहा है
कोई रोके रवानी आँसुओं की
ये दरिया बहते बहते थक गया है
मैं पढ़ सकती हूँ अन-लिख्खे को अब भी
ये कश्फ़-ए-ज़ात है या इक सज़ा है
ये कैसी साज़िशों में घर गई हूँ
मुझे मुझ से छुपाया जा रहा है
घने जंगल में तन्हा छोड़ कर वो
कहीं से छुप के मुझ को देखता है
ख़ुदा-हाफ़िज़ मिरे ऐ हम-नशीनो
कि मुझ को तो बुलावा आ गया है
कशिश कुछ इस क़दर है मुझ में 'शबनम'
समुंदर मेरी जानिब बढ़ रहा है
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