मौसम के पास कोई ख़बर मो'तबर भी हो
मौसम के पास कोई ख़बर मो'तबर भी हो
मौज-ए-हवा के साथ तिरा नामा-बर भी हो
सुन लेगा तेरी चाप तो धड़केगा देर तक
लाख अपने गिर्द-ओ-पेश से दिल बे-ख़बर भी हो
अर्ज़ां से लोग भागते उस को तो ग़म नहीं
लाज़िम नहीं कि हुस्न में हुस्न-ए-नज़र भी हो
बरसों से जिस मकाँ में मेरी बूद-ओ-बाश है
अब क्या ये लाज़मी है वही मेरा घर भी हो
सुसताए जिस के साए में हर आरज़ू मिरी
इस दिल के सहन में कोई ऐसा शजर भी हो
शह-राह-ए-रौशनी पे चला है जो मेरे साथ
तारीक रास्तों में मिरा हम-सफ़र भी हो
कितने ही फूल चेहरे धुआँ बन के रह गए
इस सानेहे से काश कोई बा-ख़बर भी हो
उस के लिए तो दाव पे ख़ुद को लगा दें हम
तदबीर वो बताओ कि जो कारगर भी हो
जागे हुए गुलों ही से 'शबनम' को प्यार है
मुमकिन है कोई शय तिरे ज़ेर-ए-असर भी हो
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